Tuesday 31 October 2017

प्रकृति का समय: कल और आज





कल का समय:-
     सुबह की बेला है। चिड़ियाँ जग गई, शायद गाने के लिए। ठंडी-ठंडी हवा चल रही है। सूर्य किरणों की बौछारें लेकर धरती पर उतर रही है। यह धरती उज्जवलित हो रही है। पेड़-पौधे हवा में झूम रहे है। जीवों का सामान्य जीवन-क्रम चल रहा है। चाहे उड़ने वाले हो, चाहे दौड़ने वाले हो, चाहें रेंगने वाले अथवा तैरनेवाले, ये सभी जीव अपने में काफी खुश दिख रहे हैं। इतना ही नहीं प्रकृति का नजारा कुछ और भी है। नदियाँ इठलाती हुई बह रही है। मछलियाँ स्वतंत्र जल में तैर रही है। कुछ बच्चे समूहों में तैर रहे है। पनभरियाँ पानी भर रही है। कहीं नालों से खेतों की सिंचाई हो रही है, तो कहीं फसल लहलहा रहे हैं। वसंत ऋतु में पुष्प अपने सुगंध से प्रकृति को सुवासित कर रही है। भौरें गुनगुना रहे हैं। पेड़ों से नये पत्ते निकल रहें है। कोयल की मीठी बोल से प्रकृति में मिठास आ गया है। एक के बाद एक ऋतु समय पर आते-जाते हैं। कहीं कोई कलह नहीं। सब शान्तिमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हर जगह सामंजस्य तथा सौहार्द्रपूर्ण माहौल है। अहा! प्रकृति का यह दृश्य कितनी मनोरम है। इस नैसर्गिक दृश्य ने मेरे नाम को मोह लिया है। अतः हम चाहते हैं कि प्रकृति का यह दृश्य हमेशा बनीं रहे।
आज का -समय:
      किन्तु समय की कुचक्र में मनुष्यों के कारण प्रकृति की दशा और दिशा बदल गई। इस विज्ञान युग में भौतिकता का काफी्र विकास हुआ है। भौतिक वस्तुओं की उपयोगिता ने मनुष्य की मनोःस्थिति बदल दी। मनुष्यों की अत्यधिक लालसाओं, इच्छाओं के कारण प्रकृति के छेड़-छाड़ हुआ है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त  संसाधन यथा-हवा, जल, जमीन, जंगल हम सभी जीवों की अस्तित्व के लिए आवश्यक है। इसकी नैसिर्गिक गुणवत्ता  में थोड़ी-सी बदलाव आकस्मिक परिवर्तन को अंजाम देती है। चूँकि हम जानते है कि प्रकृति की नैसर्गिक गुणवत्ता  इसकी प्रमुख विशेषता है। सचमुच हमलोग विज्ञान युग में पहुँच गए हैं। चहँु ओर परिवर्तन-ही-परिवर्तन नजर आते है। मशीन युग में सुविधा काफी मिल रही है। भौतिक वस्तुओं की भरमार लगी हुई। ये सभी वस्तुएँ मूल रूप से कृत्रिम है। अतः ये सुविधाएँ नैसर्गिक नहीं हैं।  बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण प्रकृति के मनोरम दृश्य  नष्ट होते जा रहें हैं। मनुष्यों की भारी क्रियाकलापों से प्रकृति को काफी धक्का लगा है। धरती से लेकर अंतरिक्ष तक परिवर्तन देखने को मिला है। मौसम का तो अपना मिजाज हो गया है। कब मौसम असमय बदल जाय, यह कहना मुश्किल है। असमय ऋतु-परिवर्तन ने तो चिंतनीय विषय बना डाला है। ऋतु परिवर्तन चक्र अंसतुलित हो गया है। विभिन्न ऋतुओं जैसे गर्मी, ठंडी, वर्षा, बसंत आदि का समय बदल गया है। कैलेण्डर के मुताबिक ऋतु-अंतराल में भी परिवर्तन देखने को मिला है। ठंडी समय से पहले ही गिर जाती है। गर्मियों में सूर्य प्रचंड ताप से जीव-जंतुओं को परेशानी में डाल देता है। पेड़-पौधे सूखने लगते है। जबकि शीत में पाले मारते है। ऋतु-चक्र परिर्वतन के कारण फसल अंतराल चक्र में परिवर्तन हुआ है। परिणामवश फसल की वृद्धि प्रभावित हुई है। मानों कि प्रकृति ने अपना मुँह मोड़ लिया है तथा विकाराल रूप धारण किया है। इसका मतलब है कि प्रकृति हमसे रूठ गई है। हमें उन्हें मानाना होगा। हमें उन्हें खुश  करना होगा। प्रकृति की रक्षा करने से ही हमारी रक्षा होगी। प्रकृति के प्रत्येक जीव हमारे मित्र हैं। ऐसी भावना रखनी चाहिए। सदा उनके संसर्ग में रहना होगा। हम जानते है कि प्रकृति सर्वशक्शिाली तथा सर्वगुणसम्पन्न हैं। यह संपूर्ण-संसाधनों से भरपूर है। किन्तु आधुनिक मनुष्य प्रकृति को हर तरह से चुनौदी दे  रही है। हम उनकी ही संसाधनों से उन्हें दबाने की कोशिश कर रहें है। सुविधापरस्त लोग कृत्रिम वातावरण तैयार करने के लिए विभिन्न यंत्रों एयरकंडीशनर, फ्रीज, पंखा, कूलर इत्यादि का उपयोग करते हंै। यह कृत्रिम वातावरण प्राकृतिक वातावरण से भिन्न होते हैं। अर्थात् दोनों एक जैसे नहीं होते हंै। उदाहरण के लिए विभिन्न यंत्रों से हम कमरे या कार को वातानुकूलित करते है। यहाँ कमरे/कार को छोटी निकाय तथा प्रकृति को बड़ा निकाय समझें। हम जैसे ही छोटे निकाय से बड़े निकाय अर्थात् वातनुकूलित क्षेत्र से प्राकृतिक निकाय में जाते है तो शरीर में अचानक परिर्वतन होने लगते हैं।
      इससे हमारे शरीर में अचानक परिवर्तन आने लगते है। अतः हमें प्रकृति में (खुले निकाय) में ही रहना चाहिए। संपूर्ण प्रकृति परिस्थितिक तंत्र से जुड़ हुआ है। थोड़ी-सी गड़बड़ी विकराल रूप ले लेती है। बहुत कारणों से पारिस्थितिक तंत्र अंसतुलित हो चुका है। अब तो बड़ी-बड़ी भयंकर परिवर्तन होने लगा है। विश्व में ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीन गृह प्रभाव, अम्लीय वर्षा, हिमस्खलन, भूस्खलन, चक्रवात इत्यादि हो रहा है। इससे वन तथा वन्य जीवों को काफी नुकसान हुआ है। जीवों की कई प्रजातियाँ भी लुप्त हो गई है। पेड़-पौधों जो कल हरा-भरा था, चिडियाँ घोंसला बनाती थी, अब वह वीरान जैसी लगती है तथा सूख चुके हंै। दरवाजे तथा आस-पास के मोटे-मोटे पेड़ अब कटने लगे है। वृक्षारोपण से ज्यादा कटाई की दर ज्यादा है। फलस्वरूप वनों का प्रतिशत घटा है। आज कल जो भी भूमि खाली पड़ी है घर बनये जा रहें तथा कारखाने खोले जा रहे है अथवा कृषि योग्य भूमि में बदल दिया गया है। यह कुप्रक्रिया अब तेज हो गई हैं। इस समय कई पर्यावरणीय संगठन कार्य कर रही है। किन्तु अलग-अलग तरीके से । अगर जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग इस कार्य के लिए और तो हम प्रकृति को गिरते खाई से बचा सकते है।
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सिम्पल कुमार सुमन




























Saturday 21 October 2017

ठोस कचरा: एक गंभीर समस्या



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Wednesday 18 October 2017

वृक्ष: समाज के धरोहर




वृक्ष समाज के धरोहर होते हैं। वृक्ष तथा समाज एक दूसरे से जुड़े हुए है। वृक्ष की अत्यधिक उपयोगिता ने मानव समाज को काफी विकसित किया है। यह पर्यावरण संरक्षण तथा संतुलन के साथ-साथ समाज को एक सूत्र में बाँधने का कार्य भी करते है। हमारे पूर्वजों का लगाव खासकर वनों से था। वे अपनी जरूरत की चीजें वनोत्पाद से प्राप्त करते थे। लकड़ियाँ, कंद-मूल आदि इन्हीं वन से प्राप्त करते थे। आज भी आदिवासी समाज लोग वनों की पूजा करते है। हमारे घरों में भी पीपल, तुलसी, नीम, आँवला जैसे पेड़-पौधे की पूजा करते है। हमारे ग्रंथों में वृक्ष को लगाना पुण्य माना गया है, किन्तु छोटे एवं बेमतलब के वृक्षों को काटना पाप है। वृक्ष अकेलेपन को महसूस होने नहीं देते। उनके निकट रहने से मन प्रफुल्लित होता है वैज्ञानिकों ने पहले ही सिद्ध कर दिया है कि वृक्षों में भी प्राण होते है। काटने-छाँटने पर उन्हें भी दुःख-दर्द होता है। वे भी हमारे तरह खुशी से झूमते है। अतः वृक्ष भी मित्र की भांति  व्यवहार करते है। कवियों ने अपनी कविताओं में वृक्ष का मानवीकरण भी करते है। परकिल्पनाओं के आधार पर वृक्षों का संदेश कवि द्वारा समाज में बतायेे जाते है। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी वृक्षारोपण करने एवं सेवा करने को कहा था। आज जिस मोटे-मोटे तने वाले वृक्षों को देखते है, उन्हें हमारे बजुर्गो ने लगाया था। उन्हें की डाल पर कितनी पीढ़ियाँ खेले और खेल रहें है। उनसे से लकड़ी प्राप्त करते है और फल भी खा रहे है। उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति में एक पीढ़ी वृक्ष लगाते है, अगले पीढ़ी  के लिए। अतः वृक्ष लगाने की यह परंपरा लगी रहती है। यही समाज के धरोहर का आधार है। हमें वृक्ष की तरह सहनशील एवं उदार बनना चाहिए। हमें इससे सीख लेनी चाहिए। अतः हमें भी वृक्ष लगानी चाहिए, ताकि समाज लाभान्वित हो सके, तथा अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणाश्रोत बनें।

सिम्पल कुमार सुमन

Tuesday 17 October 2017

वृक्ष सेवा: एक महान कार्य


वृक्ष की सेवा करना एक महान कार्य हैं।  इनसे केवल मनुष्य ही नहीं अन्य जीव-जन्तु की लाभान्वित होते है। पर्यावरण के संतुलन में वृक्षों का योगदान महत्वपूर्ण  है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती । वृक्ष सेवा का मतलव पेड़-पौधों की संरक्षण एवं सही देख-भाल करना होता है। बहुत सारे लोग तो पेड़-पौधे तो लगा देते है, किन्तु सही देख-भाल नहीं करते। सही मायने में वृक्षारोपण के पश्चात् उनका देख-भाल करना निरंतर आवश्यक है। हमारे वैज्ञानिकों एवं विद्वानों ने पेड़-पौधों को हरा सोना कहा है। इन्हें बचाना बहुत जरूरी है। क्योंकि इसी की उत्पाद से समस्त जीव-जन्तु प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जीवित है। इनके उत्पाद हमें कई रूपों में पाते हैं यथा फल-फूल, औषधियाँ, ऑक्सीजन  इसके आलावे पर्यावरण के संतुलन तथा वर्षा होने में मदद करती है। यह हरा सोना प्रकृति में खुले आसमान के नीचे विराजमान है। यह बहुत सारे कीड़-मकोड़े एवं पशु-पक्षियों के आश्रयस्थल है। कुछ शौकीन लोग अपने दरवाजे पर सुन्दर-सुन्दर फूल लगाते है। कुछ लोग औषधिय  वाले पौधों को दरवाजें पर लगाना उचित समझते हंै। इससे न केवल उनके दरवाजे की रौनक बढ़ती है बल्कि आसपास के वातावरण को रोगाणु मुक्त कर हमें बचाती है। इतना ही नहीं हम अपने दरवाजें पर भी बागवानी कर सकते हंै। आँवला, अनार, पपीता, आमरूद, केला, नींबू इत्यादि लगा सकते हैं। कुछ सजावटी और लकड़ी देने वाले पेड़ों के बौनसाई भी लगा सकते हैं। प्रकृति के सारे पेड़-पौधों का अपना-अपना महŸव है। करीब हजारों साल पहले चरक ने अपने शिष्यों को बताया था प्रकृति का सभी पेड़-पौधे प्रकृति के आवश्यक अंग है और सारे पेड़-पौधे में औषधीय गुण है। ऐसा कोई पेड़-पौधा नहीं है, जिसमें औषधीय गुण न हो। वृक्ष सेवा एवं संरक्षण की प्रक्रिया आज से ही नहीं बल्कि हजारों वर्षो से चली आ रही है। हमारे भारतीय ऋषि-मुनियों ने जन्म-मरण तथा अन्य संास्कृतिक उत्सवों में वृक्षों लगाने को कहा था तथा वृक्ष संरक्षण हेतु वृक्ष सेवा की परंपरा बताई थी। यही कारण है कि आज भी महिलायें वट, पीपल, आँवला, नीम, तुलसी केला जैसे पेड़-पौधें में पानी डालते है और पूजा अर्चना करते हैं। वृक्ष सेवा एवं संरक्षण का सबसे उल्लेखनीय उदाहरण राजस्थान के विश्नोई समाज द्वारा वृक्ष संरक्षण है। जिसमें बच्चे, महिलायें, बूढ़े बढ़-चढ़ कर भाग लिये थें। इसका नेतृत्व अमृता देवी नामक महिला ने किया था। वृक्ष संरक्षण के दौरान उनकी हत्या भी कर दी गई। कई महिलायें बच्चें, बुढें ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। अंततः सफलता मिल ही गई। वृक्ष काटाई पर रोक लग गई। वृक्ष सेवा का दायरा बहुत ही विशाल है। अंततः वृक्ष संरक्षण वृक्षा सेवा का दूसरा रूप है। हमें पीछे नही हटना चाहिए। अपने आस-पास और समाज के लोगों के बीच इनकी जानकारी जरूर देनी चाहिए ताकि समाज के हर लोग वृक्षरोपन एवं उसकी महत्ता  से रूबरू हो सके। इस महान कार्य से देश, समाज एवं प्रकृति का भला होगा। अब हमें आगे आने की जरूरत है तथा वृक्ष सेवा करनी है।

Tuesday 10 October 2017

उपचार के चयन के प्रति लोगों का भ्रम


चिकित्सा रोग का उपचार है/ बीमारी की दो व्यापक श्रेणियां हैं: शारीरिक और मानसिक रोग। अब हमारे विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बहुत अच्छी तरह से विकसित किया गया है और कई बीमारियों के उपचार में अधिक उन्नत किया गया है। नई बीमारियों के परिचय या विकास के साथ वैश्विक जनसंख्या अधिक तेजी से बढ़ जाती है। वैज्ञानिक के द्वारा विकसित किए गए विभिन्न रोगों के नए रोगों के विकास के दौरान, शरीर की शारीरिक और मानसिक स्थिति हमारे जीवन शैली से बहुत प्रभावित हो सकती है। हमारी आदत और आवास, भोजन की प्रकृति, नींद और लगातार प्रदर्शित संपर्क (सीडीसी) की अवधि स्मार्ट फोन या कंप्यूटर से शरीर और मन के विघटन के लिए जिम्मेदार है। अंदर और हमारे आसपास मानसिक समस्याओं के लिए शारीरिक बहुत सारे इन प्रकार की बीमारी वाले लोगों की बीमारियां चिकित्सा के लिए डॉक्टरों के पास जाती हैं। लोग किसी भी तरह स्वस्थ होना चाहते हैं इस उद्देश्य के लिए वे चिकित्सक को बदलते हैं और उपचार के इस विधा के कारण बदल सकते हैं। हमारी समझ में चिकित्सा के चयन पर होना चाहिए। चिकित्सा पद्धति शरीर के शरीर को समय से कम तक लंबी अवधि तक प्रभावित कर सकती है। 21 वीं सदी के लोग तेजी से सोचते हैं और जल्दी से करते हैं। होमियोपैथी की तुलना में एलोपैथी का एक्शन टाइम कम है। ध्यान रखें कि सभी प्रकार की बीमारी के लिए कोई भी चिकित्सा लागू नहीं हो सकती है। प्रत्येक प्रकार की चिकित्सा में कुछ सीमाएं हैं कुछ लोग शर्तों के अनुसार नियम का पालन करते हैं, लेकिन हमारे स्वास्थ्य के लिए हमेशा लाभकारी नहीं होते। प्रत्येक प्रकार की बीमारी का विशेष चिकित्सा द्वारा इलाज किया जा सकता है। प्रमुख रोगों में से एक मानसिक रोग है जो मनोवैज्ञानिक द्वारा इलाज किया जा सकता है यह रोग चिकित्सा के अनुरूप है। मस्तिष्क का तनाव गीत का उपयोग करके कम किया जा सकता है ताकि इस चिकित्सा को संगीत चिकित्सा कहा जा सके। कुछ चिकित्सकों ने संगीत चिकित्सा में विश्वास किया और वे भी सफल हुए। अगर किसी व्यक्ति को मानसिक तनाव से पीड़ित है जैसे सिरदर्द स्वयं को कम कर सकते हैं आज तक, हमारी जिंदगी बीमारी का सफर बन गई और मौत के साथ समाप्त हो गया। इसलिए लोग चिकित्सा के लिए भ्रमित हैं। एक अच्छा चिकित्सक चिकित्सा के लिए अधिक गंभीर है और चिकित्सा के लिए समर्पित है। हमेशा चिकित्सीय दवाएं फायदेमंद नहीं होती हैं प्राचीन चिकित्सा में से एक योग है अब एक दिन यह योग चिकित्सा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। मेरी राय यह है कि रोग संवाददाता चिकित्सा का चयन अच्छा तरीका है थेरेपी का तरीका जीवन को खुश कर सकता है और हमारे लिए शाप भी हो सकता है। गलत उपचार के प्रभाव पूरे जीवन में बीमारी को बदल सकते हैं। हम दोनों मन और भौतिक शरीर के मालिक हैं और यह हमारी रखरखाव कैसे हमारी समस्या है। सही निर्णय लेने के लिए हमारी चुनौती है। चिकित्सा चयन के दौरान सावधान रहें/

Monday 9 October 2017

अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी ;एसबीद्धरू अनुसंधानए विकास और भविष्य के परिप्रेक्ष्य


अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी (एसबी): अनुसंधान, विकास और भविष्य के परिप्रेक्ष्य
बायोटेक्नोलॉजी व्यावहारिक और बहुआयामी विज्ञान है अंतरिक्ष में जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी के तहत वर्गीकृत है। इस समय में, जैव प्रौद्योगिकी कई विभागों में वर्गीकृत है लेकिन पांच प्रमुख हैं। ये हैं (पीएएमएआई):
ए। प्लांट जैव प्रौद्योगिकी(Plant Biotechnology)
बी पशु जैव प्रौद्योगिकी(Animal Biotechnology)
सी मेडिकल जैव प्रौद्योगिकी(Medical Biotechnology)
डी। कृषि जैव प्रौद्योगिकी(Agricultural Biotechnology)
ई। औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी(Industrial Biotechnology)
यह सबसे उभरती हुई विभाजन के अलावा अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी है। अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी, जीवविज्ञान, गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, प्रौद्योगिकी (उपकरण और तकनीकों) और डेटाबेस (बायोइनफॉर्मेटिक्स) के साथ पीएएमएआई का पूरी तरह से एकीकरण होगा। अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी मिशन अंतरिक्ष या अन्य ग्रहों में अनुसंधान और विकास से संबंधित है। जीवन के कई रहस्यों को खोलने में मदद करने के लिए माइक्रोग्राविटी क्षेत्रों में अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास। PAMAI में अनुसंधान और विकास अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी के तहत हो सकता है दरअसल, अंतरिक्ष यात्री या अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा एकल कोशिका प्रोटीन (एससीपी) की बढ़ती प्रथाओं का भोजन (उत्तरजीविता) के लिए खाद्य प्रोटीन का भी छोटा पैमाने पर उत्पादन होता है। अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान एवं विकास जीवन के कई मंडलों में मदद करेगा जनरल बायोटेक्नोलॉजी डिविजन के बारे में आर एंड डी में लागत और निवेश अत्यधिक महंगा है। लेकिन अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास सामान्य बायोटेक आरएंडडी (पीएएमएआई) की तुलना में अधिक महंगा है। मनुष्यों और उच्च बुद्धि के उत्सुक मन में इच्छा बढ़ जाती है हमारे ग्रह की (पृथ्वी) जीवित व्यवस्था और चयापचय के बारे में जानने के लिए वैज्ञानिकों के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी की अवधारणा को विकसित करने की दुनिया की इच्छा के वैज्ञानिक अंतरिक्ष में चयापचय पद्धति (माइक्रोग्राविटी की उपस्थिति) के अध्ययन के लिए रहने वाले सिस्टम पर माइक्रोग्राविटी और सांख्यिकीय और सैद्धांतिक ऊष्मप्रवैगिकी के असर एक एकल सेल जीवन पैटर्न और सेल व्यवहार को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के तहत पृथ्वी पर कोशिका (प्रोकैरियोट्स एवं यूकेरियोट्स) का चयापचय पैटर्न जीवों से अलग हो सकता है जो कि माइक्रोग्राविटी के अधीन है। अंतरिक्ष यान यात्रियों या अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वांछित प्रोटीन और पुनः संयोजक कार्बनिक भोजन के उत्पादन के लिए अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में पुनः संयोजक डीएनए टेक्नोलॉजी (आरडीटी) महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अगर हमारे पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का सेवन किया जाएगा और खाद्य उत्पादन के लिए पर्याप्त भूमि और संसाधन नहीं होंगे तो संभवतः मानव सभ्यता चंद्रमा, अन्य ग्रहों या अंतरिक्ष में भी स्थानांतरित हो सकती है। भविष्यवादी मानव कॉलोनी 2150 ईस्वी के आसपास स्थापित करेगा। कई अंतरिक्ष उन्मुख कंपनियां अब चंद्रमा या अन्य ग्रहों पर मानव कालोनियों को स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। इसका मतलब है कि भविष्य में अंतरिक्ष के जैव प्रौद्योगिकी के अलावा अन्य ग्रहों या चंद्रमा या अंतरिक्ष में कृषि या खाद्य उत्पादन संसाधनों के लिए विकल्प नहीं होंगे। यह संभव है कि स्थान औद्योगीकरण और व्यवसाय संचालन अंतरिक्ष में अच्छी तरह से विकसित और समृद्ध देशों द्वारा संचालित किया जा सकता है। जैव प्रौद्योगिकी के उपकरण और तकनीक भविष्य में जीवन की स्थिरता की संभावना को बढ़ा सकते हैं। विभिन्न प्रौद्योगिकियों के एकीकरण द्वारा चंद्रमा की पर्यावरण स्थितियों (चंद्र) को बदला जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) के राष्ट्रीय एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) इस शोध प्रस्ताव पर बहुत प्रयास कर रहा है। माइक्रोग्राविटी (अंतरिक्ष या चंद्रमा) में जीवन जीन सेल के चयापचय को प्रभावित कर सकता है और उचित परिस्थितियों में भी जीन की अभिव्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। कई जिज्ञासु प्रयोग और शोध हैं जो अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में संभव होगा जो अंततः भविष्य की पीढ़ियों के लिए अंतरिक्ष में मनुष्य के जीवन के अस्तित्व में मदद करता है। गैर-स्थायी ग्रह को जीवन स्थायी जीन में बदलना भी संभव है। अब इस समय वैज्ञानिक प्रयास चल रहे हैं अधिकतर, अधिक विकसित देशों को इस समय अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी के लिए अच्छी तरह से समर्पित है और हमारा शोध नवजात चरण में है।

Sunday 8 October 2017

प्रदूषण जगत बनाम विज्ञान जगत


इस जगत का क्या नाम दूँ - विज्ञान जगत का प्रदुषण जगत। यह पढ़कर आपको भले ही अटपटे लगते हो लेकिन सच यह है कि विज्ञान जगत ने जीवन को सहज और सरल बना दिया है। मनुष्य जाति का यह प्रयास रहा है कि वह कम समय में अधिक कार्य करें, लम्बी दूरियां तय करें। यह सब संभव है तो विज्ञान के कारण जो हमारी आवश्यकता एवं कल्पना शक्ति का प्रतिफल है। 18वीं - 20वीं शताब्दी महान अविष्कार का युग रहा है। आज विज्ञान जगत ऊँचाईयों को छू रहा है और अपनी चरमोत्कर्ष पर पहुॅच चुका है। आज से करीब 1950-1960 के दशक के अखबारों में प्रदूषण जैसी कोई शब्द इस्तेमाल नहीं होता था। लोग इन शब्दों से अपरिचित थे। लेकिन आजकल के समाचार पत्रों में पर्यावरण की हत्या, अद्योगिक दूर्धटनाए, वनोन्मूलन, महामारी, हैजा की दहशत, डेंगु की समस्या, जैसी शीर्षक से समाचार पत्र भरे रहते है। अभी हाल में ही परमाणु परीक्षण के कारण भूकंप के झटके पढ़ने को मिले है। इन सभी का मूल कारण प्रदूषण ही है। वैज्ञानिक इस बात से सहमत है। यह प्रदूषण मानवीय क्रियाकलापों का एक अन्य उपोत्पाद है। इन 60-70 वर्षो के अंतराल में इतना परिवर्तन हो गया है कि हम विज्ञान जगत को प्रदूषण जगत समझने लगे हैं। वैज्ञानिक विकास ने अत्यधिक प्रगति की है और प्रौद्योगिकी नई ऊँचाईयों को छूने लगी है। प्रौधिगिकी (टेक्नोलाॅजी) विकास के बिना औद्योगिक विकास संभव नहीं है। हम यह स्वीकार करते हैं कि प्रदूषण विकास से जुडा हुआ है। परन्तु इसकी एक सीमा भी है। मानव स्वास्थ्य की कीमत पर नहीं। प्रदूषण को सहन सीमा के भीतर रखना होगा। मानवीय क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न प्रदूषण से अन्य जीव-जन्तु भी प्रभावित हो रहें है। हम जिस खुले हवा से प्राणदायक आॅक्सीजन ग्रहण करते है, उसके साथ-साथ मोटरकारों, अन्य पेट्रोलियम वाहन से निकले धुएॅ भी ग्रहण करते है। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रहें है। चलित वाहनों से निकले धुओं में कार्बनडाईआॅक्साइड, कार्बन मोनोआॅक्साईड, सल्फर डाईआॅक्साईड और नाइट्रोजन के आॅक्साईड जैसी जहरीली गैसे मिली रहती है। इससे स्वास्थ्य संबंधी बिमारियों जैसे फेफडों में सूजन, फेफडों का कैंसर, दृष्टि बाधा, न्यूरोलाॅजिक्ल डिसआॅडर हो जाती है। सभी प्रकार के प्रदुषणों में वायु प्रदूषण को सबसे खतरनाक बताया गया है। अधिक वाहनों का उपयोग, छोटी दूरियों को तय करना वायू प्रदूषण का सबसे जिम्मेदार कारक माना गया है। अगर हम अभी से अपनी आवश्यकता को काबू नहीं कर पाये तो प्रकृति के जिस खुलेपन में हम जी रहें है, वहाॅ जहरीली हवा पीने को मिलेंगे। हम यह नहीं कह सकते है कि यह प्राकृतिक रूप है, बल्कि यह मानवीय क्रियाकलापों का प्रतिफल है। जिसका परिणाम हम सभी पर पड़ रहा है और आने वाले पीढ़ियाॅ इसे भुगतने को तैयार होंगे।
लेखक
सिम्पल कुमार सुमन
19.01.2017

प्लांटीबाॅडी: जैव प्रौद्योगिकी की अनुसंधान की नई दिशा

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