वृक्ष समाज के धरोहर होते हैं। वृक्ष तथा समाज एक दूसरे से जुड़े हुए है। वृक्ष की अत्यधिक उपयोगिता ने मानव समाज को काफी विकसित किया है। यह पर्यावरण संरक्षण तथा संतुलन के साथ-साथ समाज को एक सूत्र में बाँधने का कार्य भी करते है। हमारे पूर्वजों का लगाव खासकर वनों से था। वे अपनी जरूरत की चीजें वनोत्पाद से प्राप्त करते थे। लकड़ियाँ, कंद-मूल आदि इन्हीं वन से प्राप्त करते थे। आज भी आदिवासी समाज लोग वनों की पूजा करते है। हमारे घरों में भी पीपल, तुलसी, नीम, आँवला जैसे पेड़-पौधे की पूजा करते है। हमारे ग्रंथों में वृक्ष को लगाना पुण्य माना गया है, किन्तु छोटे एवं बेमतलब के वृक्षों को काटना पाप है। वृक्ष अकेलेपन को महसूस होने नहीं देते। उनके निकट रहने से मन प्रफुल्लित होता है वैज्ञानिकों ने पहले ही सिद्ध कर दिया है कि वृक्षों में भी प्राण होते है। काटने-छाँटने पर उन्हें भी दुःख-दर्द होता है। वे भी हमारे तरह खुशी से झूमते है। अतः वृक्ष भी मित्र की भांति व्यवहार करते है। कवियों ने अपनी कविताओं में वृक्ष का मानवीकरण भी करते है। परकिल्पनाओं के आधार पर वृक्षों का संदेश कवि द्वारा समाज में बतायेे जाते है। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी वृक्षारोपण करने एवं सेवा करने को कहा था। आज जिस मोटे-मोटे तने वाले वृक्षों को देखते है, उन्हें हमारे बजुर्गो ने लगाया था। उन्हें की डाल पर कितनी पीढ़ियाँ खेले और खेल रहें है। उनसे से लकड़ी प्राप्त करते है और फल भी खा रहे है। उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति में एक पीढ़ी वृक्ष लगाते है, अगले पीढ़ी के लिए। अतः वृक्ष लगाने की यह परंपरा लगी रहती है। यही समाज के धरोहर का आधार है। हमें वृक्ष की तरह सहनशील एवं उदार बनना चाहिए। हमें इससे सीख लेनी चाहिए। अतः हमें भी वृक्ष लगानी चाहिए, ताकि समाज लाभान्वित हो सके, तथा अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणाश्रोत बनें।
सिम्पल कुमार सुमन
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